भंकस मारता है खालीपीली
हरिभाऊ खड़ीकर ताजा अख़बार हाथ में लिए सीधे बाबूराव हड़के के घर पहुंचे । लाख मेसेज बाजार में घूम रहे हैं कि दोस्त आपसी राजनितिक बहसों से बचें लेकिन दिल में जब तूफान उठे तो कोई क्या कर सकता हैं ! सामने पड़ते ही बोले - “कोई बात तो हो कायदे की, चुनाव हैं तो कायदे से मुद्दे हों जनता के बीच । पार्टियों के काम हों, सोच और विचारधारा हो । किया धरा सामने रख कर बहसें हों । लेकिन ये क्या बोलियाँ लग रहीं हैं बढ़ चढ़ कर ! मानों लोकतंत्र नीलामी पर चढ़ा है । कहते हैं पर्व है लोकतंत्र का और हर जगह चीरहरण दिखायी देता है ! माना कि ज्ञानियों ने कहा है कि मुफ्त में कुछ नहीं मिलता है । हर चीज की कीमत चुकाना पड़ती है । लेकिन बता दो नेताओं को कि ज्ञानियों का मतलब वोट से कतई नहीं था । जब आस लगी घटने तो रेवड़ियाँ लगी बंटने । गलत बात है ये, एक गलत प्रवृत्ति है । “
“अरे इसमें
मैं क्या करूँ खड़ीकर साहेब, मैंने थोड़ी बोला है नेतों को कि ऐसा बोलो करके । कायको
झमेला करते तुम ! देने वाला राजी, लेने वाला राजी तो अपुन को कायको राड़ा करने का !
देने वाला खुद जानता है कि लेने वाला वोट दे देगा इसकी कोई गारंटी नहीं है फिर भी
देता है ना ? गलतफहमी चुनाव की जान होती
है । जिसकी जमानत जप्त होना है वो भी काउंटिंग के पहले तलक सीना तान के घूमता के
नहीं ? आप तो मजे लो भाऊ और खुश रहो मस्त क्या ।“ बाबूराव हड़के ने बात को हवा नहीं
दी ।
“ऐसा कैसा
मस्त रहो हड़के !! घर घर छोकरा लोग खाली बैठे हैं हाथ पे हाथ धर के । किधर भी काम
नहीं उनको । उनकी भूख, गरीबी और बेकारी का मजाक नहीं है ये ! नौकरी मांगने को गए
थे, डंडे खा कर लौटे राजधानी से वो लोग । पता
है उनके पोट दुःख रहे हैं अभी तलक और कोई पार्टीबाज ठंडी पट्टियाँ रखने को नहीं आया
। दूसरी पार्टी वाला भी कोई नहीं आया !” बाबूराव ने हरिभाऊ खड़ीकर को आधा गिलास ठंडा
पानी दिया । बोले – “गुस्सा नको भाऊ । कोई देख लेगा तो देशभक्ति पर उतर जाते लोग ।
फिर कोई सुनवाई नहीं है, ना थाने में और ना कोरट में । चलो उधर गार्डन में चलते
हैं, अर्धा अर्धा कोप चा पियेंगे ।“
गार्डन में
केमरा और माइक वाले ‘स्टोरी’ कर रहे थे । देखते ही हरिभाऊ खड़ीकर के मुँह में घुसे,
पूछा – “चुनाव होने वाले हैं आप किस पर भरोसा करते हैं ? इस पार्टी पर या उस पार्टी
पर ?” लेकिन हरिभाऊ कुछ नहीं बोले और तमतमा
कर मुँह फेर लिया । लेकिन इस वक्त मिडिया सिस्टम का नया जंवाई है, वह अड़ गया, - “देखिये
जी आपको बताना पड़ेगा कि आप किस पर भरोसा करते हैं ... इस पार्टी पर या उस पार्टी पर
?”
“दोनों पर
नहीं ।“ हरिभाऊ खड़ीकर भड़क कर बोले ।
“क्यों
नहीं ! आपको किसी एक पर भरोसा करना पड़ेगा । ... गुस्से की क्या बात है ! ... देखिये
जरुरत पड़ी तो हम भी पलटी मारेंगे । ”
“कोई भरोसे
के काबिल नहीं है । तुम भी भरोसे के नहीं रहे । तुम हमारे प्रतिनिधि थे, उनके हो
गए !! तुम्हारा काम हमारी बात सरकार तक पहुँचाना है लेकिन तुम भोंपू बन गए !
लोकतंत्र चार पाँव की गाय थी अब दो पैरों वाला मुर्गा बना दिया ... चिकन । तुम्हें
पता है ! खा गया सिस्टम तुमको । ऐसे कोई बिकता है ! हटाओ माइक, मुझे तुमसे कोई बात
नहीं करना है ।“ हरिभाऊ खड़ीकर ने खड़खड़ाया ।
“वोट किसे
दोगे इतना तो बता दो प्लीज ।“
“किसको भी
नहीं दूंगा ।“ वे आगे बढ़ गए ।
“पुरानी
पेंशन मिलेगी तो दोगे क्या ?”
उन्हें ठीक
से सुनाई नहीं दिया, बोले -“हड़के क्या बोला ये !? ... कुछ अच्छी बात बोली क्या ?“
“कुछ नहीं,
भंकस मारता है खालीपीली । चल उधर चा पीते हैं अर्धा अर्धा कोप ।“
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