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सितंबर, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बंसी पर विकास की धुन !

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  इतिहास के शुरुवाती पन्नों में दर्ज है कि जब रोम जल रहा था तब नीरो बंसी बजा रहा था । धराधीश ने सुना तो बोले इसमें आपत्तीजनक क्या है ! ? दुनिया में सब जगह इतिहासकार इसी तरह के होते हैं क्या ! अच्छे में बुरा देखने वाले ! रोम अगर जल रहा था तो उसमें नीरो क्या करे ! उसे बंसी बजाना आती थी तो बंसी ही बजाएगा ना ? हमारे यहाँ तानसेन गाना गा कर पानी बरसा देते थे । आप लोगों ने सुना होगा , मैंने तो देखा भी है । हाँ मैंने देखा है । उस जमाने में मैं अकबर के दरबार में ही था और जोधाबाई के मंदिर में पूजा करवाता था । ये तो ईश्वर क्रूपा है कि पिछले जन्मों की बहुत सारी बातें मुझे याद हैं । तानसेन ने कई बार पानी बरसाया और लोग भीग गए । क्योंकि तब छतरी नहीं होती थी , चायना ने भी नहीं बनाई थी । अगर नीरो बेचारा बंसी बजा कर पानी बरसने का काम कर रहा था तो बुरा कर रहा था क्या ? मैं आपसे से पूछता हूँ कि नीरो बुरा कर रहा था क्या ? पानी नहीं बरसा ये बात अलग है , लेकिन उसकी कोशिश में कोई कमी थी क्या ? क्या यह नहीं हो सकता है कि इसमें बादलों की गलती हो । हर कोई तानसेन हो भी नहीं सकता है । आगे किसी ने लिखा है

वोटर ईमानदार हो, नेता कैसा भी चलेगा

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  आदमी को पैदा होने के बाद अपने यहाँ वोटर बनाने में अठ्ठारह साल लग जाते हैं । वो समझता है कि बालिग हुआ अब शादी-वादी करेगा , व्यवस्था मानती है कि वोट हुआ अपने काम आयेगा । हर पाँच साल में , या यों कहें मौके मौके पर वोट को लगता है कि वही मालिक है मुल्क का । इस बात का असर इतना कि उसका माथा गरम और चाल टेढ़ी हो जाती है । आँखों में शाही डोरे से उतार आते हैं । कुछ डाक्टर इसे सीजनल बुखार बता कर गोलियां वगैरह देकर फारिग हो जाते हैं । लेकिन अनुभवी डाक्टर बकायदा टेस्ट आदि करवा कर वोटर की जान को और कीमती बनाते हैं । इधर लोकतंत्र के पक्के खिलाड़ी जानते हैं कि वोटों को भविष्य की चिंता सताती है इसलिए वोटिंग से पहले उसे पिलाना जरुरी होता है । इधर वोट बिना कुछ किए सुखी होना चाहते हैं , भले ही हफ्ता पंद्रह दिनों के लिए ही क्यों न हो । हालांकि सुख एक भ्रम है । लेकिन विद्वान यह भी कह गए हैं कि भ्रम ही है जिससे लोकतन्त्र को प्राणवायु मिलती है । इस सब के बीच अच्छी बात यह है कि वोटर भुलक्कड़ भी है । कल उसकी इज्जत से कौन खेल गया यह उसे याद नहीं रहता है । थोड़ा बहुत हो भी तो भूलाने के लिए प्रायः एक बोतल काफी ह

मुस्करा रहे हैं, जो काटते थे कभी

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  लोगों ने देखा कि आवारा कुत्ते की दुम कुछ दिनों से सीधी है ! पुराने लोग बताते हैं कि कुत्ते की दुम सीधी हो तो उसके पागल होने की आशंका प्रबल रहती है   ।   पागल कुत्ता काटने लगता है   ।   इरादतन काटे या गैरइरादतन, चौदह इंजेक्शन पूरे लगते हैं   ।   इसलिए पागल कुत्ता जब भी बस्ती में आता था तो लोग बच्चों को लेकर घरों में घुस जाते थे   ।   पागल कुत्ते के आने से लोगों को फ़ौरन घर में छुपाना एक रिहर्सल हो जाया करती थी जो डाकुओं के आने पर बड़े काम आती थी   ।   मुसीबत आये तो मुकाबला करने के बजाए छुप जाना हमारी नीतिगत प्राथमिकता है   ।   इस भागमभाग के दौरान कई बार बस्ती के वाशिन्दे-कुत्तों को पागल कुत्ते की गुस्ताखी का जवाब देने का विचार आता, सो वे अपनी पूरी ताकत से राजनैतिक धार्मिक नारों जैसा कुछ भौंकते हुए उसके पीछे दौड़ जाते थे और उसे सीमा पार खदेड़ कर ही दम लेते थे   ।   कभी कभी ऐसा भी होता था कि हिम्मत करके बस्ती के लोग डंडे लाठी लेकर निकल पड़ते, कुछ लोग पत्थर ले कर पागल कुत्ते को घेर लेते और दिन दहाड़े उसका खत्मा कर डालते   ।   कई दिनों तक इसकी चर्चा चलती, कोई इसे मॉबलीचिंग कहता तो कोई एनकाउंट

भक्त और भगवान

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                             भगवान का ऐसा है कि वे आदतन दयालु हैं । एक बार कोई ठीक से भक्ति का डेबिट कार्ड बना ले तो उसके लिए भगवान एटीएम हो जाते हैं । कथाओं से पता चलता है कि भगवान अक्सर प्रसन्न हो कर प्रकट होते हैं और भक्त से पूछते हैं कि – “मांगो वत्स , क्या मांगते हो । तुम्हारी हर इच्छा पूरी होगी । मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूँ” । कुछ ऐसा ही हाल के दिनों में हुआ । भगवान एक भक्त की चपेट में आ   गए । भगवान का कहना भर था कि – “मांगो वत्स ....” । वत्स ने लेपटॉप खोल कर अपनी इच्छाओं कि ई फाइल खोल कर दिखा दी । “इतनी इच्छाएँ !! “ भगवान के होश उड़ते उड़ते बचे । “तो ! ? ... देखिए आप भगवान हैं और स्वर्ग के सोलो-ऑनर । आपके लिए कुछ भी असंभव नहीं है । आप दरिद्रों से भले ही कोरे वादे करते हों पर मैं आपका एक जरूरी भक्त हूँ । जब खास अवसरों पर आप नगर भ्रमण पर निकलते हैं तो मेरे डोले पर ही सवार रहते हैं । आपके नाम पर भोजन-भंडारे मेरे कारण होते हैं । आपकी कीर्ति के लिए कथा-कीर्तन मैं करवाता हूँ । आप अपना सोने का सिंहासन देखिए , कितना सुंदर और भव्य बना है । जानते ही होंगे किसने बनवाया ह

**वापसी में ह्रदय सम्राट

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‘ क्या टाइम हुआ  ?’  हृदय-सम्राट ने आधा घंटे में पांचवी बार पूछा तो साथ बैठे  ‘ जीभइयाजी ’   ने कोई जवाब नहीं दिया । अंदर ही अंदर वो भुनभुनाया , ‘‘ टिकिट नहीं मिला है तो घर पहुँचने तक अब ये टाइम ही पूछते रहेंगे हर पांच-दस मिनिट में ! .... और मैं भी पागल हूँ क्या पाँच पाँच मिनिट में बताता रहूँ  ! ’’ हृदय-सम्राट पिछले एक हप्ते से दिल थामे दिल्ली में डेरा जमाए बैठे थे कि हाईकमान से मुलाकात हो जाएगी और टिकिट भी कबाड़ लेंगे। साथ में दस  ‘ जीभइयाजी ’  भी थे जो हृदय-सम्राट के खर्चे पर ऐश करते हुए आए थे ,  लेकिन टिकिट नहीं मिला और एक एक कर सारे पंछी यहाँ वहाँ उड़ गए ।  ‘ जीभइयाजी ’  टाईप लोगों का सीजन चल रहा है ,  उजड़े चमन में ज्यादा देर रुकने की गलती कोई नहीं करता है । ‘‘ कौन सा स्टेशन है  ?’’  इस बार हृदय-सम्राट ने खिड़की से बाहर देखते हुए नया सवाल पूछा । ‘‘ अभी तो चले ही है दिल्ली से !! अभी कौन सा स्टेशन आएगा ! दिल्ली के बाहर मतलब आउटर पर ही होंगे कहीं ।  ’’ ‘ जीभइयाजी ’  ने अपनी चिढ़ पर काबू रखते हुए जवाब दिया । ‘‘  दिल्ली साली अपने को सूट नहीं करती है । पिछली बार भी टिकिट नहीं मिला था ।  ’’ ‘