अच्छाई हुआ टिकिट नी मिला अपुन को
“ देखो यार ऐसा है कि अपुन टिकिट के वास्ते राजनीति करते-ई नी हें । मेरा तो मन-ई नी था । मेने तो मांगा-ई नी था किसी से । वो तो तुम लोग बोले तो सोचा चलो ठीक हे । आपना क्या हे , आपन तो फकीर आदमी हें । झोला उठा के चल देंगे कंई भी । “ गुलाब सिंग उर्फ गब्बू भिया घर में उदास बैठे हैं । इस बार उम्मीद थी कि मिलेगा । ज़ोर भी खूब लगाया था । लेकिन जिस साँड की दुम पकड़ कर वैतरणी पार कर रहे थे उसी ने मँझधार में लात मार दी । अब बीच धार में कोई दूसरा साँड तो मिलने से रहा । पट्ठे भी उदास थे , एक बोला –“ गब्बू भिया आपकी कसम , देख लेना अबकी बार अपन साँड के लिए काम नी करेंगे । बड़ा चुनाव तो उसीको लड़ना हे । उसके झंडे-डंडे कोन उठता हे .... अपन-ई उठाते हें ना गधे कि तरे ! अबकी उसको पता चल जाएगा कि कार-करता क्या चीज होता हे । “ “ अरे ठीक हे रे कानिया । तू लोड मत ले । अपने को कायकी कमी हे । अच्छाई हुआ टिकिट नी मिला , मिल जाता तो लोगों के पाऊँ छू छू के कमर दो दिन में तीन तलाक बोल देती । यूं समझ ले कि टिकिट नी मिला तो इज्जत बच गई । इज्जत टिकिट से बड़ी चीज होती हे बेटा । “ पता नहीं गब्बू भिया ने अपने