एक भगवान आसमान में और एक हमारे पास है !

 





भगवान होना आसान है इन्सान होने में बड़ी दिक्कत है । ये भी भगवान हैं ताजे ताजे, गार्डन फ्रेश । वैसे कई नाम से जाने जाते हैं । कुछ के लिए बाबा हैं, कुछ के लिए महाराज, कोई पंडीजी बोलता है तो कोई बापू । सियासी गलियारों में भगवान संबोधित हैं । दिन में आम जनता से मिलते हैं और रात में सियासतबाजों से । जिल्ले-सुभानी रात बारह बजे के बाद पहुंचे हैं । भगवान की आवाज खनक रही है -  “फितरत इन्सान की, खेल मुकद्दर का । नहीं मिलना हो तो कुँवा खोदते जाओ पत्थर के सिवा कुछ नहीं मिलेगा । मिलना हो तो बंदा हाथ उठा के मांग ले और बादल बरस जाएँ । मालिक महरबान तो मुर्दा पहलवान । मेहनत करो, करते रहो, तुम्हारे पास मेहनत के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं । देना नहीं देना ऊपर वाले के हाथ में है । औलाद नहीं तो औलाद देता है । रुतबा नहीं तो रुतबा देता है । कुर्सी चाहोगे कुर्सी भी मिलेगी । कुर्सी का मौसम है और तुमको पता है कि ये मौसम बड़ा बेईमान है । जब नेता किसी का सगा नहीं तो वोटर सगा कैसे हो सकता है ! लेकिन चिंता नहीं, वशीकरण कोई कर सकता है तो एक ही नाम है इस धरती पर ... हमारा । बाबा के दरबार में हजारी लगाओ और अपना खुद का दरबार बनाओ । जिसने भी आकर झोली फैलाई वो भर के ले गया । जो सोचता रहा वो जिंदगीभर सोचता रहा । पहले आओ पहले पाओ वरना दूसरी पार्टी वाले भी लाइन लगा के खड़े हैं । भगवान कंपनी पूरा पैकेज ले के बैठी हुई है । इधर यज्ञ - हवन चलेगा उधर चोला चढ़ेगा, सैकड़ों जगह पूजा पाठ होगा, चार धाम चौंसठ तीर्थ सब हो जायेगा । पूजा की गेरंटी रहेगी अगर पेमेंट एडवांस होगा ।“

“अगर एडवांस नहीं दे पायें तो ?” साथ खड़े सेक्रेटरी ने पूछा ।

“भगवान और जनता में फर्क करो बच्चे । मुंह जबानी फुग्गों से जनता बहल सकती है हम नहीं । समझते क्या हो तुम भगवान को ?!”

“कुछ समझते हैं तभी तो आये हैं ।“

“पैकेज है पूरा । एक साथ सब जगह पूजा होगी । हर जगह हमारे लोग तैनात हैं । जैसे ही आदेश मिलेगा पूजा शुरू कर देंगे ऊपर वाले की ।“

“ऊपर वाले भगवान मान जायेंगे भगवान जी ?”

“उनकी इतनी पूजा करेंगे जितनी कभी किसी ने नहीं की होगी । आप चिंता नहीं करें हमारा ट्रेक रिकार्ड बढ़िया है । रिजल्ट हंड्रेड परसेंट है । “                                                                                                                                                         

“जनता की पूजा तो हम भी बहुत किये हैं पर इस बार डाउट चल रहा है । ससुरे अंगूठा छाप भी सवाल करने लगे हैं । पढ़ेलिखे तो समझो सियार हैं कुछ पता चलने ही नहीं देते हैं कि क्या सोच रहे हैं । माहौल कुछ साफ़ नहीं दिख रहा । “

“साफ दिख रहा होता हो हमें पूछते क्या आप लोग ! हम विकट परिस्थितियों के लिए ही बैठे हैं ।“

“पूजा-पाठ छू छा सब करा लेंगे कोई दिक्कत नहीं है । पर काम गैरंटी से होना चाहिए । “ जिल्ले सुभानी बोले ।

 “पूरा गारंटी है । जैसे भर भर के बाँट रहे हो वैसे ही भर भर के मिलेगा भी । नहीं मिले तो दो करोड़ वापस कर देंगे । “

“तो क्या दो करोड़ फीस है आपकी !?” सेक्रेटरी चौंका ।

“फीस तो चार करोड़ है भगत । हिसाब लगा के देख लो साल का एक करोड़ भी नहीं पड़ता है । आजकल तो एक एक विधायक पच्चीस करोड़ ले लेता है पलटी मारने का ! आप लोगों से कुछ छुपा थोड़ी है ।”

“चलिए ठीक है । लेकिन इस बात की क्या गैरंटी है कि हमारे आलावा किसी और पार्टी के लिए अनुष्ठान नहीं करोगे । “

“पूजा की गैरंटी है, सवाई करेंगे, कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, जितना हो सकेगा दबाव बनायेंगे । बाकी मर्जी तो उपर वाले की है, उन पर किसी तरह का छापा तो पड़वाया नहीं जा सकता है । जल्दी बोलो हाँ या नहीं ?“

“हाँ भगवान हाँ ... हम भी कोई कसर नहीं छोड़ने वाले हैं । ... एक बात बताइए ... क्या आप ऐसी कोई पूजा भी जानते हैं जिससे सामने वालों को वोट नहीं पड़ें ? दुगने पैसे देंगे । “ जिल्ले सुभानी पहले घुटनों पर बैठे फिर लोट पड़े ।

---


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

**वापसी में ह्रदय सम्राट

मुस्करा रहे हैं, जो काटते थे कभी

भंकस मारता है खालीपीली