जो मांगोगे वो नहीं मिलेगा


 


आचार संहिता लग गयी है तो पूरा सम्मान करेंगे हम उसका । कानून का भी करते हैं । लेकिन सम्मान करना अलग बात है और पालन करना अलग । आप चिंता नहीं करें बंद रास्तों में भी गलियां होती हैं । आप जो मांगोगे मिलेगा । जो नहीं मांगोगे वो भी मिलेगा । बेचारगी सिर्फ जनता की नहीं होती है । चुनाव सर पर हों तो सरकार की भी होती है, चाहे कुर्सी पर बैठी हो या कुर्सी पर बैठने वाली हो । पजामा फाड़ कर रुमाल बांटना पड़ते हैं तो आत्मा जान जाती है । वो तो अच्छा है की राजनीति में आत्मा नाम की चीज कोमा में होती है । लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है । मिल जाए कुर्सी तो पजामों की क्या कमी है । मन में आयेगा उसका उतरा लेंगे । राज की बात बताएं, आज बांटे रुमाल कल कालीन बनेंगे । आज जिन गदहों को बाप बनाना पड़  रहा है  कल उन्हीं गधों पर लदाई भी होगी । आप समझे कि नहीं ? चुनाव जो है किसी राजस्थानी ब्याव से कम नहीं है । एक एक वोटर बौराया बराती है ससुरा । जनवासे में नहीं बैठाएंगे, खिलायेंगे पिलायेंगे नहीं तो पगलाते देर नहीं लगेगी । बाद में चाहे मुंह फेर लो पर अभी तो मिलनी करना पड़ेगी और नेग भी देना पड़ेगा ।

“वो सब तो ठीक है, पर लाओगे कहाँ से हुजूर !?” एक आवाज आई तो सन्नाटा छा गया ।

“उसकी चिंता आप नहीं करें वोटर महाराज । जिसने चुनाव दिया है, आप जैसी जनता दी है वही व्यवस्था भी करेगा । देने वाला श्री भगवान ।  कर्ज लेंगे, जगह जमीन बेचेंगे, अभी भी कुछ बचत पड़ी है पुरखों की, किस दिन काम आयेगी । सुना नहीं क्या कि ‘जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा’ । तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा ! चिंता मती करो जी, राम की चिड़िया राम का खेत ; खा लो चिड़िया भर भर पेट ।... जब तक ये भाई है आपका ... आपको कुछ सोचने की जरुरत नहीं है ।“ वे बोले ।

“सुना था हमने भी । चिड़िया जब पूरा खेत चुग गयी, सब उजाड़ दिया तब खेत मालिक ने उस चौकीदार को बर्खास्त कर दिया था । इस बात को ध्यान में रखा जाये महाराज । ... कल को यह ना हो कि आपको झोला उठा कर जाना पड़ जाये । “

“ तो इसमें क्या है ! झोला हम भी रखते हैं । झोले में वजन थोड़ी होता है ।“

“ आपके पास भी झोला है ! देखा नहीं कभी ?”

“नेताओं का झोला उनके अपने कंधे पर नहीं होता है ।  राजनीति एक टीमवर्क है । कंधे किसी के, जेब किसी की, मुंह किसी और का, कान किसी के । मुखिया को तो बस ‘खुल जा सिम सिम’ कहना पड़ता है । बताओ तुम्हारे लिए कौन सी घोषणा कर दूँ ? मांगो क्या मांगते हो ?”

“अब क्या मांगें आपसे महाराज ! जनता का विवेक बना रहने दीजिये, बरगलाइये मत । उन्हें सही-गलत समझने दीजिये । शांति और सौहाद्र जरुरी है अगर दे सको । महंगाई को डायन कहते थे अब उसे समधन बनाये हुए हो । इतना बदल जाओगे सोचा नहीं था । चौतरफा पाखंड को हवा देना बंद करें तो जनता आभारी होगी । अपराधियों का सीना नपवा लीजिये, सुना है चौड़ा हो गया है इनदिनों । नौजवान रोजगार मांगते हैं तो उन्हें भंडारों का पता बताया जाता है । ये सब ...”

“एई, रुक जाओ ! मुंह बंद एकदम । तुम कौन हो ? मिडिया के तो नहीं हो सकते ! बुद्धिजीवी हो क्या । नक्सली कहीं के । फ़ौरन बाहर निकल लो पतली गली से । पीछे मुड़ कर मत देखना और लौट कर मत आना ।“

“ महाराज हम जो मांगते हैं वो मिलता नहीं और जो नहीं मांगते है वो आप देते जाते हैं । आपके इस राजशाही च्यवनप्राश में गुड़ ही गुड़ है दवा एक भी नहीं ।“ जाते जाते वो कह गया ।

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