पटिये वाले कल्लू सरकार और हाड़कूटे भाऊ
पोपसिंग ने आते ही गमक कर बताया कि
‘भिया माहोल बन ग्या हे चुनाव का अपने यां पे । कल खलीपा के पटिये पे भेसबाजी चल
री थी कि लाफड़े चल गए दनादन । बिचारे कल्लू पांडे जबरन लपेटे में आ गए ओर खोपड़ी
फुड़ा बैठे । टांके तो नी आए पन खून भोत निकल ग्या । में तो पेलेई के रिया था कि मत
करो रे माथाफोड़ी अपने को क्या । पन कोई सुने तब ना । कल्लू भिया को लग्ता हे कि जेसे
रोज पीएम के साथ बेठ के चा पीते हें । ओर हाड़कूटे भाऊ को लगता हे कि कांग्रेस उनके
खून में सर्राटे से भे री हे । अब बताओ दोनों में पटे तो केसे !“
शहर में कई जगह ऐसी हैं जहाँ शाम को
अड्डेबाज़ जुटते हैं । बहसें होती हैं, शायरी भी । शहर में कहाँ क्या चल रहा है,
किसकी तूती बोल रही है और किसकी बोलने वाली है सब पता चल जाता है । कभी कभी
इश्किया माहौल में रंगीन किस्सों की बाढ़ आ जाती है तो रुकने का नाम ही नहीं लेती ।
चादर की एक एक सलवट पर पीएचडी कर डालते हैं पटिया यूनिवर्सिटी वाले । पोपसिंग
धुरंधर अड्डेबाज है । खाए बिना रह सकता है अड्डे पर जाए बिना नहीं । उसका कोई एक
अड्डा नहीं है । झील का पंछी है, सुबह से शाम तक कई अड्डों को तेल पानी देता है । क्रेडिट
है उसकी, आज की डेट में तमाम पत्रकार उससे ‘रामूज’ ले के अपनी खबरें बनाते हैं ।
“कोन कल्लू पांडे पिट गए !? अपने
कल्लू सरकार ? “
“हाँ वोई, कल्लू सरकार । ... जरा सी
बात बर्दास्त नी होती उसको, अरे भिया ये देखो कि लोग किसकी बारा नी बजाते हें आजकल
। चुनाव के टेम पे तो सारी परटी होन एक दूसरे को नंगा करती हें । राजनीति में आए
हो तो नंगई से क्या डरना । येई रिवाज हे इसमें बुरा क्या मान्ना । हे कि नी !”
“तो मारा किसने कल्लू सरकार को ?!”
“कोन मारेगा ... उसी का खासम ख़ास
... लंगोटिया यार हाड़कूटे भाऊ । बोल रा था
बेरोजगारी बढ़ री हे, हर घर मेंगाई का मारा हे, भ्रस्टाचार जम के चल रा हे, विदेस
से पैसा बी नी आया अबी तलक, नेता लोग झूठ बी जम के बोलते हें, सरम बी नी आती हे, समाज
में भाईचारा खतम हो रिया हे ... सरकारी प्रापर्टी बिक री हे, बस एसई बड़ी देर से
कुच कुच बोल रा था कि कल्लू सरकार को ताव आ गया ओर उनके मूँ से ‘तेरी तो ....’
निकल ग्या । हाड़कूटे भाऊ को बी ताव आ ग्या, बोला गाली किस्को दी तूने ? कल्लू ने
बोला तेरे को ओर तेरी परटी को, कल्ले क्या कन्ना हे ... हाड़कूटे ने दन्न से सरकार
को उठा के पटक दिया । सरकार का माथा पटिये से टकराया ओर खून निकल आया । सरकार के
साथ कोई नी था । ... पारटी अलग अलग हो तो आजकल दोस्तों का बी भरोसा नी हे । “
“ये तो बुरा हुआ पोपसिंग । यार
तुमको बचाना चइये था । ऐसे मौकों पर अपना पराया नहीं देखा जाता है । “
“देखो भिया, अबी देस का माहोल सई नी
हे मेरे हिसाब से । कल्लू सरकार का हाथ पकड़ लेता तो वो देसद्रोही बोलता ओर मेरेई
काम लगा देता । ओर हाड़कूटे भाऊ को रोकूँ तो वो बजरंगी केगा ओर दो लाफड़े अलग से जमा
देगा । अपन ना इधर के ना उधर के । ये बी सई हे कि मेन पारटी वाले आपस में सिर
फुड़ाई नी करेंगे तो माहोल केसे बनेगा ? पन आप टेंसन कायको लेते हो । चुनाव का
माहोल हे, लड़ेंगे भिड़ेंगे ओर रिजल्ट आने के बाद फिर एक हो जाएँगे । आप बी आओ पटिये
पे कबी, मजे लो, ... पन जरा दूर से लेना ।
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