सरकार अभी लेडिस-फर्स्ट पर काम कर रही है !


 


दुःख कभी कभी ख़ुशी का लबादा पहन कर भी आता है । मोहल्ले में जिन जिन भी घरों में लड़कियां हैं अचानक लाड़ली हो गयीं । जिनके यहाँ दो-तीन-चार हैं वो कल तक देनेवाले से कुपित थे आज कह रहे हैं भगवान के घर देर है अंधेर नहीं । दयाराम की घरवाली गंगाजली से देखा नहीं जा रहा है । कल तक सर उठा कर चल रही थी कि दो लड़के हैं नौकरी पा गए तो दहेज़ कूट लेगी । लेकिन दोनों बेरोजगार पिछले पांच साल से घर बैठे डाटा और आटा खुटा रहे हैं । पढ़ाया लिखाया लेकिन किसी काम नहीं आया । डिग्री भी असली है लेकिन कोई देखने पूछने वाला नहीं मिला आज तक । जहाँ भी नौकरी मांगने जाते हैं बेइज्जती हो जाती है ।  कितना तो समझाया कि नाले के किनारे जगह पड़ी है खाली, पकौड़े बेच लो मजे में । ज्यादा नहीं तो हप्ता पंद्रह दिन बेच लो । कल को किस्मत चमक गयी तो कहने को हो जायेगा कि बड़ा संघर्ष किया । गरीबी सफलता के ग्लेमर को बढ़ाती है । लेकिन नहीं सुनते, कहते हैं ठहरो अभी बेरोजगारी भत्ता मिलेगा, बैठ के खायेंगे मजे में । सरकार अभी लेडिस फर्स्ट पर काम कर रही है । वो संस्कार और परम्परा को निबाहने वाली है । उसे पता है कि एक भांजा सौ बामनों के बराबर होता है ।  दक्षिणा समझ के भी देंगे तो लाड़लियों से ज्यादा मिलेगा । शरम छोड़ने को कहो तो कहते हैं कि बाप-दादा का नाम खराब होगा । गंगाजली चिल्लाती रह जाती है कि बाप-दादा को गयाजी छोड़ आये हैं उनके नाम के साथ । कुछ कमाओगे धमाओगे तो ही उनका नाम बचा रहेगा । लेकिन कोई सुनता नहीं ।

किसी तरह छाती पर सिल रखे गंगाजली गुजार रही थी कि उसकी बहन झूमती हुई आ गयी । मारे ख़ुशी के बात बात में फुलझड़ियाँ छोड़ रही थी । चारों बेटियां ऑनलाइन लाड़ली हो गयीं दन्न से । खाते में नगद पैसा भी आ गया है, सुना अबकी बढ़के आएगा । लड़कियों के बापू तो मारे ख़ुशी के तीन दिन से दारू पी रहे हैं । वो तो बुरा हो पिछली सरकार का जो नसबंदी कर गयी वरना एक-दो और हो जातीं । भोत मुसीबत के दिन काटे, अब अच्छे दिन आये हैं । अब देखना हाट बाज़ार कैसे ठाठ से करती हैं हम लोग । अगली बार आयेंगे तो तेरे लिए भी कुछ ले के आयेंगे । तुझ बिचारी को तो दो लड़कों की जिम्मेदारी के आलावा कुछ मिला नहीं ।

गंगाजली किसी और माटी की तो है नहीं । इतने अपमान के बाद उसके अन्दर गुस्से का लावा फूटने लगा और रहा नहीं गया तो शाम को सारा गुस्सा दयाराम पर उतार दिया । मूरख आदमी तीन सौ रुपल्ली वाले ट्रांजिस्टर रेडियो के झांसे में आ गया वरना दो तीन बच्चे और हो सकते थे । आज मोहल्ले में नाक तो नहीं कटती । हम भी लाड़ली वाले हो जाते । सारी गलती तुम्हारी है, तुमने जिंदगी में एक भी ढंग का काम नहीं किया । लड़के भी ऐसे पैदा किये कि समझ में नहीं आता कि इन्सान हैं या अजगर ।

“चिंता मत कर पगली, तेरे लड़के भी वोटर हैं । देखना चुनाव आते आते वो भी लाड़ले हो जायेंगे । सरकार को कौन सा अपनी जेब से कुछ देना पड़ता है । बस एक बार डर बैठ जाये कि हार रहे हैं देखना उसी दिन लाड़ले लौंडे योजना आ जाएगी दन्न से ।“ दयाराम ने उसे शांत करने की कोशिश की ।

 “वोटर हम-तुम नहीं हैं क्या !? अधेड़ हो गए तो क्या लाड़ले नहीं हो सकते ! लाड़ली-बुआ, लाड़ले-फूफा नहीं हो सकते क्या ?”

“कौन सी दुनिया में रहती हो तुम ! बुआ-फूफा को अब कौन पूछता है । नेग का इक्यावन रुपये का लिफाफा मरे शरम के खुद पीला पड़ जाता है । तुम तनिक शांत बैठो, सरकार बनने के बाद कोई लाड़ली मिली तो उसे ब्याह लायेंगे । तुम भी जल्दी से साठ की हो लो, क्या पता लाड़ली अम्मा शुरु हो जाये ।

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